Wednesday, 25 May 2011

मैंने देखा
फूल और पानी को मैंने मिलते देखा
डालों पे फूलों को हिलते देखा
हिल -हिल के इनको कुछ कहते देखा
फिर इन फूलों को मिटटी में मिलते देखा
मिटटी में  मिलनें पर भी इनको महकते देखा
औरों को क्या कहूँ ? मैंने ही इनको हंसते देखा
इन फूलों में भी मैंने कुछ जज्बे देखा
फूल और पानी को मैंने मिलते देखा
बूंदों को फूलों पे बरसते देखा
इन फूलों पे भौरों को बिचरते देखा
फूल और भौरे से मैंने भी सीखा
जग को कुछ देना और देते ही रहना
फूल और पानी को मैंने मिलते देखा
अन्तिमा मिश्र

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